फिल्म शैतान के बाद अजय देवगन (Ajay Devgn) अपनी एक और फिल्म के साथ हाजिर हैं। फिल्म मैदान (Maidaan) सिर्फ एक स्पोर्ट्स ड्रामा फिल्म नहीं है, इसमें आपको पॉलिटिक्स, इमोशन्स, जज्बा और प्यार ये सब देखने को मिलेगा। अजय देवगन ने इस फिल्म में सैयद अब्दुल रहीम नाम के फुटबॉल कोच का रोल अदा किया है। जिन्होंने अपने देश को 1952 से 1962 के बीच बुलंदियों पर पहुंचा दिया था। लेकिन इनते बड़े देश के हीरो को नाम मात्र के लोग ही जानते हैं। तो आइए जानते हैं क्या है हमारे इस हीरो की कहानी और डायरेक्टर अमित शर्मा ने इसे कैसे पेश किया है।
फिल्म की कहानी
फिल्म की कहानी ही 1952 के ओपलंपिक से शुरू होती है जब इंडिया के खिलाड़ी नंगे पैर फुटबॉल ग्राउंड में खेलते हैं और हार जाते हैं। सैयद अब्दुल रहीम (अजय देवगन) पर जब हार का जिम्मा जाता जाता है तो वो देशभर से अपनी नई टीम खड़ी कर देते हैं, जो 1956 के मेलबर्न ओलिंपिक्स में चौथा स्थान हासिल करती है। हालांकि 1960 में इस टीम को रोम ओलिंपिक्स में हार का सामना करना पड़ता है।
लेकिन इससे पहले कि सैयद आगे कुछ बड़ा करने की कोशिश करते कि उन्हें एक सीनियर स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट रॉय चौधरी (गजराज राव) की पॉलिटिक्स की वजह से बाहर कर दिया जाता है। इसी दौरान कोच को अपने लंग कैंसर का पता चलता है। फिर क्या? वो अपनी मौत का इंतजार घर पर बैठकर करने लगते हैं। लेकिन उनकी पत्नी (प्रियामणि) उन्हें इस बात के लिए राजी कर लेती है कि उन्हें ऐसा इस दुनिया से नहीं जाना चाहिए।ॉ
बस फिर क्या था? कोच एक बार फिर फेडरेशन के पास जाकर गुहार लगाते हैं और टीम इंडिया को कोच करने की अपील करते हैं। इस बार उन्हें चांस मिल जाता है और वो अपनी टीम को एशियन गेम्स के लिए तैयार करते हैं। शानदार प्रदर्शन दिखाते हुए इंडिया की फुटबॉल टीम 1962 के एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक हासिल करती है और आजतक दोबारा ये इतिहास नहीं दोहराया गया है। इस जीत के 9 महीने बाद सैयद अब्दुल रहीम दुनिया छोड़ देते हैं।
क्यों शानदार है फिल्म?
अजय देवगन समेत फिल्म के बाकी कलाकारों की एक्टिंग काफी शानदार है। गजराज राव की तो खास सराहना करनी होगी कि उन्होंने ऐसे अपने रोल को निभाया है कि उनसे सच में घिन आने लगेगी। फिल्म में पीके बनर्जी (चैतन्य शर्मा), चुनी गोस्वामी (अमर्त्य रे), जरनैल सिंह (दविंदर गिल), तुलसीदास बलराम (सुशांत वेदांडे) और पीटर थंगराज (तेजस रविशंकर) जैसे खिलाड़ियों का रोल करने वाले सभी एक्टर्स ने बढ़िया प्रदर्शन किया है।
डायरेक्टर अमित शर्मा को ‘बधाई हो’ जैसी फिल्मों के लिए जाना जाता है। उन्होंने इस फिल्म में जान फूंक दी है। एक एक मैच उन्होंने शानदार ढंग से डायरेक्ट किया है। फिल्म का सेकेंड हाफ तो आपको रूला ही देगा। आंखों में नमी और जोश जज्बे के साथ फिल्म के आखिरी पल बहुत ही उम्दा हैं। आपके भी मैच देखते हुए रोंगटे खड़े हो जाएंगे। मैच ऐसा दिखाया गया है जैसे कि आप खुद ग्राउंड में मौजूद हों।
इसमें और हो सकता था सुधार
फिल्म के म्यूजिक और गानों को थोड़ा और जज्बेदार बनाया जा सकता था। हालांकि इसका बैकग्राउंड स्कोर फिल्म में ठीक बैठता है। लेकिन ऐसा कोई गाना नहीं है जिसे आप याद रखें। चूंकि फिल्म करीब 3 घंटे की है तो इसका फर्स्ट हाफ थोड़ा स्लो जान पड़ता है।
लेकिन इस तरह की फिल्में जरूर देखी जानी चाहिए। तभी हमें इंडिया के उन हीरोज के बारे में पता चलेगा जिनके बारे में हम जानते ही नहीं हैं या बहुत कम जानते हैं।